गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

जनसंदेश टाइम्‍स अब बनारस में

लखनऊ तथा कानपुर से प्रकाशित जनसंदेश टाइम्‍स जल्‍द ही बनारस में भी कदम रखने वाला है. फिलहाल बनारस से अखबार के प्रकाशन की टाइम लाइन तय नहीं की गई है, परन्‍तु संभावना जताई जा रही है कि दिसम्‍बर के अंत तक यह अखबार बनारस की सरजमीं पर पहुंच जाएगा. फिलहाल अभी सब कुछ प्राइमरी स्‍टेज में हैं. प्रबंधन टीम के गठन की तैयारियां भी कर रहा है. खबर है कि जल्‍द ही टीम भर्ती का अभियान भी चलाया जाएगा. फिलहाल कुछ लोगों के नाम पर चर्चा चल रही है.



सूत्रों का कहना है कि कई अखबारों के वरिष्‍ठ लोग जनसंदेश टाइम्‍स प्रबंधन के संपर्क में हैं. उल्‍लेखनीय है कि जनसंदेश टाइम्‍स का प्रकाशन लखनऊ तथा कानपुर से एक साथ हो रहा है. इसके कई स्‍थानीय जिलों के एडिशन भी लांच हो रहे हैं. जनसंदेश टाइम्‍स अन्‍य अखबारों से अलग साहित्‍य एवं साहित्‍यकारों को स्‍थान देकर पुरानी परम्‍परा को फिर से जीवित करने की कोशिश कर रहा है. चर्चा है हिंदुस्‍तान से इस्‍तीफा देने वाले सीपी राय भी जनसंदेश टाइम्‍स से वरिष्‍ठ पद पर जुड़ने वाले हैं. इस अखबार के संपादक कवि एवं साहित्‍यकार के रूप में पहचान रखने वाले डा. सुभाष राय हैं.



बनारस में अखबार की लांचिंग के संदर्भ में पूछ जाने पर डा. सुभाष राय ने कहा कि बनारस में अखबार को लांच करने की योजना है, पर अभी यह प्राइमरी स्‍टेज में है. हम कई चीजों पर ध्‍यान रख रहे हैं. उन्‍होंने कहा कि टीम अभी तैयार नहीं हुई है, पर जल्‍द ही अखबार की लांचिंग के लिए टीम तैयार कर ली जाएगी. उन्‍होंने अखबार के प्रकाशन की कोई तय सीमा नहीं बताई पर कहा कि कोशिश है कि दिसम्‍बर के अंत तक हम बनारस में अखबार का प्रकाशन शुरू करवा दें.

बुधवार, 30 नवंबर 2011

पेड न्‍यूज को लेकर सरकार गंभीर

सरकार इलेक्‍ट्रानिक मीडिया को अपने अधिकार क्षेत्र में लाने की तैयारी कर रही है. पिछले काफी समय से इलेक्‍ट्रानिक मीडिया की आजादी पर प्रहार करने वाली सरकार अब इसे कानूनी चाबुक से हांकने की तैयारी में जुटी हुई है. सरकार की तरफ से सूचना एवं प्रसारण राज्‍य मंत्री सीएम जातुया ने बताया कि भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) ने प्रेस परिषद कानून, 1978 में संशोधन कर इलेक्ट्रोनिक मीडिया को भी अपने अधिकार क्षेत्र में लाने का तथा अपना नाम बदलकर मीडिया परिषद किए जाने का प्रस्ताव भेजा है. इस कानून में संशोधन का प्रस्‍ताव विचाराधीन है और यदि जरूरी समझा गया तो विभिन्‍न पक्षों के साथ व्‍यापक विचार विमर्श करके तथा मीडिया से संबंधित मुद्दों पर सर्वसम्‍मति बनाने के बाद इसका प्रारुप तैयार किया जाएगा.

जातुया ने अनिल माधव दवे के सवालों के लिखित जवाब में राज्यसभा को यह जानकारी दी. उन्होंने डी राजा के एक अन्य सवाल के जवाब में बताया कि पीसीआई के अध्यक्ष ने मीडिया को उचित प्रकार से अपने कार्यो को निष्पादित करने की खातिर संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त मीडिया की स्वतंत्रता और जिम्मेदारी के साथ काम करने के बीच संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता के मुद्दे को उठाते हुए सरकार को एक पत्र लिखा है. उन्‍होंने कहा कि पीसीआई ने ‘पेड न्यूज’ जैसे गंभीर मुद्दे का संज्ञान लिया है और इस संबंध में एक रिपोर्ट जारी की है. उन्होंने कहा कि सरकार ने एक मंत्री समूह का गठन किया है जो पेड न्यूज संबंधी पीसीआई की रिपोर्ट की जांच करेगा तथा इस समस्या का समाधान निकालने के लिए एक व्यापक नीति तैयार करने और एक संस्थागत तंत्र स्थापित करने पर अपनी राय देगा. मंत्री ने कहा कि निर्वाचन आयोग ने भी चुनाव के दौरान पेड न्यूज की घटनाओं को रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं. (इनपुट : आजतक)

प्रशांत भूषण ने संपादक को नोटिस भेजा

अन्‍ना टीम के प्रमुख सदस्‍य प्रशांत भूषण ने राजस्‍थान के भिलवाड़ा से प्रकाशित अखबार डायमंड इंडिया के संपादक को लीगल नोटिस भेजा है. प्रशांत अन्‍ना टीम के दूसरे सदस्‍य अरविंद केजरीवाल के वकील के तौर पर यह नोटिस भेजा है. नोटिस डायमंड इंडिया में प्रकाशित एक खबर पर भेजी गई है. खबर में बताया गया है कि अन्‍ना के आंदोलन को आरएसएस का पूरा समर्थन था तथा अरविंद केजरीवाल अंदरुनी तौर पर आरएसएस और भाजपा के संपर्क में थे.

खबर में अरविंद केजरीवाल के सांप्रदायिक होने का आरोप भी लगाया गया है. अखबार ने यह भी लिखा है कि अरविंद मारवाड़ी परिवार से ताल्‍लुक रखते हैं और इनके पिता तथा चाचा आरएसएस से जुड़े रहे हैं. और भी कई आरोप लगाए गए हैं. अखबार के संपादक भंवर मेघवंशी को भेजे गए नोटिस में प्रशांत भूषण ने कहा है कि इसके मिलने के पन्‍द्रह दिन के भीतर अखबार बिना शर्त के माफीनामा प्रकाशित करें. माफीनामा प्रकाशित नहीं करने की दशा में उनका क्‍लाइंट सिविल तथा क्रिमिनल केस करने के लिए बाध्‍य होगा.

टीसीरीज वालों की दादागीरी

टी सीरीज वाले खुद कितने बड़े चोर हैं, यह बालीवुड या संगीत की दुनिया से जुड़ा कोई भी शख्स बता सकता है. दूसरों की धुनें, गाने, लाइनें चुराकर और गायकों-संगीतकारों आदि से लगभग मुफ्त में काम करवाकर अरबपति-खरबपति बने ये टीसीरीज वाले आजकल कापीराइट कानून को लेकर बड़े सजग-सतर्क नजर आ रहे हैं. जो भी इनकी कंपनी से निकले गानों को बजाता मिल जा रहा है, उसे ये पुलिस के जरिए पकड़वाकर जेल भिजवा रहे हैं.

ताजा शिकार बने हैं रेडियो मस्का डाट काम के निदेशक अनिल शर्मा. सूत्रों का कहना है कि टी सीरीज वालों ने पुलिस को अच्छा खासा पैसा खिला रखा है, इसी कारण टी सीरीज वालों की तरफ से शिकायत आते ही पुलिस तत्काल आरोपी को उठा लेती है और कोर्ट में पेश कर रिमांड पर ले लेती है. वैसे अगर आपके घर में कुछ हो जाए, कोई खो जाए, कोई लुट जाए तो पुलिस घंटों तक निष्क्रिय बनी रहती है और कोशिश करती है कि रिपोर्ट न लिखनी पड़े तो ही अच्छा लेकिन टीसीरीज का मामला आते ही पुलिस बड़ी फास्ट भागने लगती है.

इस देश में कापीराइट कानून पर बहस चलाने की जरूरत है. आखिर क्यों किताब, संगीत आदि पर किसी एक कंपनी को जिंदगी भर कमाते रहने की छूट मिलनी चाहिए. इन चीजों को कुछ एक बरस के बाद कापीराइट फ्री कर देना चाहिए. जैसे हवा पानी पर किसी एक का हक नहीं उसी तरह संगीत किताब ज्ञान पर भी किसी एक का हमेशा के लिए हक नहीं बनना चाहिए. पर पूंजी के खेल के इस दौर में चोर उचक्के टाइप के लोग हमारी ही चीजों को चुराकर बेचते हैं और जब हम उसी फ्री में हासिल करना चाहते हैं तो हमें चोर बताते हैं.

टीसीरीज वालों की चोरकटई-गुंडई का मुंहतोड़ जवाब यही हो सकता है कि इनके कारनामों, करतूतों, चोरियों, चिरकुटई का भरपूर खुलासा सभी ब्लागरों-पोर्टलों को करना चाहिए. दूसरे, हर ब्लागर, पोर्टल वाले को अपने अपने अपने यहां टीसीरीज के गानों को जमकर बजाना चाहिए, देखते हैं ये चोर लोग कितने लोगों को गाना बजाने के आरोप में जेल भिजवाते हैं. रेडियो मस्का के निदेशक अनिल शर्मा की गिरफ्तारी के बारे में दैनिक जागरण में प्रकाशित खबर इस प्रकार है--

रेडियो मस्का डॉट कॉम के निदेशक गिरफ्तार

नई दिल्ली : दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने रेडियो मस्का डॉट कॉम के निदेशक अनिल शर्मा के खिलाफ कापीराइट एक्ट के उल्लंघन का मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार किया है। पुलिस ने आरोपी को पटियाला हाउस कोर्ट स्थित एसीएमएम की अदालत में पेश किया। वहां से पुलिस ने उन्हें दो दिन की रिमांड पर ले लिया। टी-सीरीज कंपनी के अध्यक्ष नीरज कल्याण ने पुलिस को रेडियो मस्का डॉट कॉम के संचालक अनिल शर्मा के खिलाफ शिकायत दी थी।

शिकायत में नीरज का कहना था कि रेडियो मस्का डॉट कॉम द्वारा बिना उनकी अनुमति या लाइसेंस के उनकी कंपनी के कैसेट के गानों को प्रसारित किया जा रहा है। यह गतिविधि कॉपीराइट एक्ट के उल्लंघन के दायरे में आती है। आर्थिक अपराध शाखा की पुलिस ने जांच कर अनिल शर्मा के खिलाफ कॉपीराइट एक्ट का मुकदमा दर्ज कर लिया। पुलिस ने उसके पास इंटरनेट पर टी सीरीज के गानों की ब्राडकास्टिंग से जुड़ा कुछ सामान भी बरामद किया है।

इस संबंध में टीसीरीज के अध्यक्ष नीरज कल्याण ने बताया कि वे इंटरनेट के माध्यम से होने वाली डिजीटल पायरेसी के खिलाफ विशेष अभियान चला रहे हैं। इससे पहले वे डिजीटल मिलेनियम कॉपीराइट एक्ट के मामले में गुरुजी डॉट कॉम, यू-ट्यूब, माईस्पेस डॉट काम इत्यादि कई वेबसाइट के खिलाफ कार्रवाई करा चुके हैं। फिलहाल उन्होंने कॉपीराइट के मामले में दिशांत डॉट कॉम को भी नोटिस भेजा है।

आपरेटरों ने बीबीसी चैनल दिखाना बंद किया

पाकिस्तान में केबल ऑपरेटरों ने बीबीसी के अंतरराष्ट्रीय टीवी चैनल बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़ को 'ब्लॉक' करना शुरु कर दिया है यानी कई शहरों में अब ऑपरेटर अब इस चैनल को नहीं दिखा रहे हैं. संवाददाताओं का कहना है कि पाकिस्तान के अधिकतर शहरों में बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़ को देखना संभव नहीं है और संभावना है कि इस प्रतिबंध को बुधवार तक ग्रामीण इलाक़ों में भी लागू कर दिया जाएगा. ऑपरेटरों का कहना है कि ये क़दम बीबीसी की टीवी डॉक्यूमेंटरी 'सीक्रेट पाकिस्तान' को प्रसारित किए जाने के बाद उठाया गया है.

ऑल पाकिस्तान केबल ऑपरेटर्स एसोसिएशन ने मंगलवार को घोषणा की कि बुधवार से जो भी विदेशी चैनल 'पाकिस्तान विरोधी' कार्यक्रम दिखाएँगे उनको दिखाना बंद कर दिया जाएगा. केबल ऑपरेटरों की संस्था ने पाकिस्तान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रेगुलेटरी अथॉरिटी (पेमरा) से कहा - "यदि विदेशी चैनल देश के लिए नुक़सानदेह जानकारी प्रसारित करते पाए जाते हैं तो उनके लैंडिंग राइट्स यानी ऑपलोडिंग और प्रसारण के अधिकार रद्द कर दिए जाएँ."

बीबीसी के प्रवक्ता ने कहा, "हम ऐसी हर कार्रवाई की निंदा करते हैं जो हमारी संपादकीय स्वतंत्रता पर अंकुश लगाती है और हमारी निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय न्यूज़ सर्विस को जनता तक पहुँचने से रोकती है. हम आग्रह करेंगे कि बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़ और अन्य अंतरराष्ट्रीय चैनलों को दोबारा जनता तक पहुँचने दिया जाए." बीबीसी की डॉक्यूमेंटरी 'सीक्रेट पाकिस्तान' में पाकिस्तान की तालिबान के चरमपंथ से लड़ने की प्रतिबद्धता पर सवाल उठाए गए हैं.

अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसियों के अधिकारियों के हवाले से इसमें पाकिस्तान के कुछ लोगों पर आरोप लगाए गए हैं कि एक ओर वे सार्वजनिक तौर पर अमरीका के सहयोगी होने का दावा करते हैं और दूसरी ओर वे ख़ुफ़िया तरीके से अफ़ग़ानिस्तान के तालिबान के हथियार और प्रशिक्षण देते हैं. ग़ौरतलब है कि हाल में पाकिस्तान में अफ़ग़ान सीमा के पास नाटो सैनिकों के हमले में पाकिस्तान के 24 सैनिकों के मारे जाने के बाद पाकिस्तानी मीडिया में चल रही आलोचनाओं के बीच बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़ को ब्लॉक करने का फ़ैसला लिया गया है. साभार : बीबीसी

दिलीप मंडल इंडिया टुडे से फिर जुड़ेंगे

आईआईएमसी से जुड़े दलित चिंतक एवं लेखक दिलीप मंडल अपनी नई पारी इंडिया टुडे के साथ शुरू करने जा रहे हैं. सूत्रों ने बताया कि वे जल्‍द ही इस मैगजीन के साथ जुड़ रहे हैं. बेबाक ब्‍लॉगर और कई किताबों के लेखक दिलीप फिलहाल आईआईएमसी से संबद्ध हैं. दिलीप मंडल के अपने करियर की शुरुआत नवभारत टाइम्‍स से की थी. इसके बाद दैनिक जागरण, अमर उजाला, जनसत्‍ता, इंटर प्रेस सर्विस के लिए काम किया.

इलेक्‍ट्रानिक मीडिया में भी दिलीप ने लम्‍बा समय बिताया है. परख न्‍यूज मैगजीन, आजतक, स्‍टार न्‍यूज, जी टीवी, सीएनबीसी आवाज के साथ भी जुड़े रहे. इकोनॉमिक टाइम्‍स ऑन लाइन के संपादक भी रहे. इन दिनों बेब पत्रिकारिता में भी लगातार चर्चा में रहते हैं. इंडिया टुडे के साथ दिलीप की यह दूसरी पारी है.

रविवार, 20 नवंबर 2011

दिल्ली सूचना विभाग में खुलेआम लूट


दिल्ली सरकार के सूचना एवम् प्रचार निदेशालय में विज्ञापन एजेंसियों की सूचीबद्धता के नाम पर खुलेआम लूट का खेल जारी है। समाचार पत्रों में छपी खबरों के बाद भ्रष्ट अधिकारी मनी भूषण मल्होत्रा को आखिरकार डीआईपी से जाना पड़ा। जिसके बाद विभाग में अकेली पड़ी निदेशक साहिबा को विभाग के अधिकारियों की सुध आई, जो इस लुट में शामिल न किए जाने से खासे नाराज़ थे। मामला बिगड़ते देख आई.ए.एस. निदेशक रीता कुमार ने अभी तक किनारे किए हुए विभाग के अधिकारियों से भी सलाह-मशविरा करना शुरू कर दिया है। अब इन अधिकारियों की भी बांछे खिल गई है, अभी तक निदेशक को पानी पी-पी कर कोसने वाले यह अधिकारी बड़े गोलमाल की फिराक हैं।
सूत्रों के मुताबिक निदेशक रीता कुमार कुछ ऐसी विज्ञापन ऐजेंसियों को सूचीबद्ध करने के लिए जिद्द पर अड़ी हुई है जो टेण्डर के मुताबिक मानदंडों पर खरी नहीं उतरती हैं। इसलिए यह पूरा प्रकरण विभाग में चर्चा का विषय बना हुआ है। बताया तो यहां तक जा रहा है कि अपनी चहेती ऐजेंसियों को सूचीबद्ध करने के लिए सुविधानुसार दस्तावेज तैयार कराए जा रहे हैं। गौरतलब है कि ग्रेड 1 ऐजेंसियां ही दिल्ली सरकार के विज्ञापन जारी करती हैं जिससे इन एजेंसियों को भारी कमाई होती है। इसी कमाई को देखते हुए कुछ ऐजेंसियां ग्रेड 1 में शामिल होने के लिए तरह-तरह के जुगाड़ लगा रही हैं ओर मोटा चढ़ावा चढ़ाने को तत्पर हैं। इसी मोटे चढ़ावे को लपकने के लिए विभाग में आपस में छींटाकशी और आर.टी.आई. युद्ध चला हुआ है।
विभाग में नए आए उपनिदेशक विकास गोयल इस पुरे प्रकरण में मुकदर्शक बने हुए हैं और माल के लिए मची इस जंग से हैरान-परेशान हैं। बताया जा रहा है कि उन्होंने विभाग के भ्रष्टाचार को देखते हुए विज्ञापन शाखा का काम देखने से इन्कार कर दिया था और विज्ञापन एजेंसियों की सूचीबद्धता के गड़बड़-झाले से भी दूर रहने की इच्छा जाहिर की है।
हास्यस्पद पहलु यह है कि निदेशक रीता कुमार भारत सरकार के सूचना एवम् प्रसारण मंत्रालय की निष्पक्ष एवम् स्वतंत्रा विज्ञापन एजेंसी डीएवीपी द्वारा सूचीबद्ध समाचार पत्रों को ही नकली बताने पर तुली हुई है जोकि इनकी लघु एवम् मझौले समाचार पत्रों के बारे में अज्ञानता की पराकाष्ठा है। गौरतलब है कि डीएवीपी से सूचीबद्ध समाचार पत्रों को पूरे भारतवर्ष की राज्य सरकारें विज्ञापन जारी करती हैं। डीएवीपी में समाचार पत्रा को सूचीबद्ध करते समय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा बनाई गई विज्ञापन नीति का पालन किया जाता है तथा आवश्यक 30-35 अनिवार्य पात्राता की शर्तों पर उचित पाये जाने पर ही सूचीबद्ध किया जाता है।
लघु एवम् मझौले समाचार पत्रा स्थानीय समस्याओं को उजागर करने में अग्रणी भुमिका निभाते हैं और एयरकंडीशन कल्चर के आई.ए.एस. रीता कुमार जैसे अधिकारियों को जगाने का काम करते हैं। निदेशक रीता कुमार के पास दिल्ली से प्रकाशित होने वाले डीएवीपी से सूचीबद्ध लगभग 600 लघु एवम् मझौले समाचार पत्रों की समस्याएं सुनने का समय नहीं है। मगर विज्ञापन एजेंसियों को सूचीबद्ध करने के लिए वह जिसप्रकार तत्परता दिखा रही है और चहेते अधिकारियों द्वारा जो सौदेबाजी का खेल चल रहा है वह जांच का विषय है।

शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

अजय राय अब अमर उजाला इलाहाबाद में

अमर उजाला, वाराणसी से खबर है कि सीनियर सब एडिटर अजय राय का तबादला इलाहाबाद के लिए कर दिया गया है. वे काफी समय से वाराणसी में अमर उजाला को अपनी सेवाएं दे रहे थे. अजय के बारे में बताया जा रहा है कि कंपनी के चेयरमैन राजुल माहेश्‍वरी से अकेले में बात करना उनके लिए भारी पड़ गया है. सूत्रों ने बताया कि राजुल माहेश्‍वरी के वाराणसी दौरे के समय अजय राय ने उनसे अकेले में बात करने की इच्‍छा जाहिर की थी, जो वरिष्‍ठों को काफी नागवार गुजरी थी. इसके बाद से अजय राय को परेशान किया जाने लगा था. उन्‍हें दो बार मेमो भी दिया गया था.

अजय राय ने बारह साल पहले आगरा में अमर उजाला ज्‍वाइन किया था. इसके बाद उनका तबादला वाराणसी के लिए कर दिया गया था. एक साल तक वे अखबार के गाजीपुर के ब्‍यूरोचीफ भी रहे. इसके पहले अमृत प्रभात को भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं.

लखनऊ से शीघ्र छपने वाले बीस पेजी रंगीन हिंदी दैनिक को स्टाफ चाहिए

.जरूरत है... : एक हिन्दी दैनिक को स्टाफ की. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से शीघ्र ही अपने प्रिंटिंग सेटअप पर प्रकाशित होने वाले बीस पेज के रंगीन हिंदी दैनिक समाचार पत्र के लिए निम्न पदों पर योग्य उम्मीदवारों की आवश्यकता है -

-समाचार संपादक, उप समाचार संपादक, मुख्य उप संपादक, वरिष्ठ उप संपादक, उप संपादक, ट्रेनी उप संपादक, राज्य मुख्यालय पर ब्यूरो एवं लोकल रिपोर्टरों सहित प्रदेश के समस्त जनपदों में अनुभवी जिला संवाददाताओं की.

-मार्केटिंग, प्रचार-प्रसार एवं प्रोडक्शन के विभिन्न पदों पर अनुभवी एवं उत्साहित फ्रेशर लोगों की.

-कंप्यूटर आपरेटर, जो पेजीनेशन भी कर सकें.

-प्रदेश के सभी जिलों, तहसीलों, ब्लाकों और कस्बों के स्तर पर एजेंटों की.

अपना बायोडाटा hrhindidaily@yahoo.in पर 15 दिन में भेजें.


फ्रांस में पहली बार मनाया गया हिंदी दिवस

फ्रांस शासित बेहद खूबसूरत रीयूनियन द्वीप में पहली बार हिंदी की पताका पहुंची है. यहाँ पर भारतीय मूल के लोगों की लगभग 225000 आबादी है. जिनमें तमिल व गुजराती मूल के भारतवंशी प्रमुख रूप से सम्मिलित है. यहां भाषाई विभिन्नता न हो कर सभी लोग फ्रेंच अथवा क्रियोल ही बोलते है. अंग्रेजी नाममात्र की भी प्रयोग नहीं होती है. यहां हिंदी का रास्ता गुजराती मूल के भारतवंशियों में सम्मिलित मुस्लिम व सुनार समुदाय में बची भाषाए उर्दू व गुजराती के बीच से निकलता है.

यहां की राजधानी सेंट डेनिस के आंदी विला में यह बहुत ही रोमांचकारी पल थे जब हिंदी दिवस समारोह में सम्मिलित होने के लिए लगभग 400 ऐसे लोग एकत्रित थे, जिनमें से कुछ तमिल जानते थे, कुछ उर्दू, कुछ गुजराती, कुछ अंग्रेजी और सभी फ्रेंच. कार्यक्रम का शुभारम्भ फ्रांस एवं भारत के राष्ट्रगीत जन-गण-मन... से हुआ. मंच पर मुख्य अतिथि काउन्सल जीनों, विशिष्ट अतिथि राकेश पाण्डेय (संपादक प्रवासी संसार, भारत) भारतीय कौंसलावास के अधिकारी महाबीर रावत, आयोजक रजनीकांत जगजीवन (अध्यक्ष, एनआरआई रीयूनियन) आंदी व उमेश कुमार थे. कुछ श्रोताओं द्वारा हिंदी बिल्कुल ही न समझने के कारण, भाषणों को हिंदी से फ्रेंच में अनुवाद की व्यवस्था की गई और यह कार्य उमेश कुमार ने किया.

भारत से पधारे राकेश पाण्डेय ने कहा कि जैसे अंग्रेजों की प्रतिनिधि भाषा अंग्रेजी है, आपके फ्रांस की प्रतिनिधि भाषा फ्रेंच है, ऐसे ही हमारे भारत में अनेक बोलियां-भाषाएं होते हुए भी हमारी भाषाई पहचान हिंदी ही है. यहां आप सभी भारत की भाषाई पहचान हिंदी के महत्व को रेखांकित करने के लिए एकत्रित हुए हैं. आप सभी को बधाई. साथ ही विदेशों में हिंदी की स्थिति पर प्रकाश डाला. इसके बाद भारतीय कौंसलावास का प्रतिनिधित्व करते हुए महाबीर रावत ने हिंदी के भारत में संवैधानिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए स्थानीय लोगों को रीयूनियन में हिंदी प्रचार–प्रसार के लिए पुस्तकें व अन्य सहायता का आश्वासन दिया कि भारतीय कौंसलावास उनके साथ है, साथ ही राकेश पाण्डेय एवं रजनीकांत के इस प्रयास को भी सराहा जिसके कारण यहां रीयूनियन में हिंदी दिवस संभव हुआ.

मुख्य अतिथि जीनों ने हिंदी दिवस के आयोजन की शुरुआत को महत्वपूर्ण बताया और आगे प्रतिवर्ष किये जाने का संकल्पना को मूर्तरूप देने की बात कही. कार्यक्रम के दूसरे चरण में वहां भारतीय मूल की युवतियों ने भारतीय परिधानों का फैशन शो आयोजित किया. कार्यक्रम के अंत में सभी अतिथियों के लिए भारतीय मिठाइयां जैसे जलेबी, पेड़ा, गुझिया व अन्य मिठाइयां पारोसी गईं. पेड़े को तो भारतीय ध्वज के अनुरूप सजाया गया था. वहां के लोकप्रिय डॉक्टर दर्शन सिंह ने अगली बार और भव्य तरीके से हिंदी दिवस मनाने की बात कही. निजी मुलाकात में सेंट लुई के मेयर क्लाउदे होराऊ की ओर से उनके सांस्कृतिक प्रबंधक एवं कवि सुली ने अगले वर्ष उनके यहां हिंदी दिवस आयोजन का प्रस्ताव भी दिया.

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

अरे! इन पत्रकारो का भी अपमान

प्रभाष जी के निधन के बाद उनकी स्मृति को संजोने के लिए न्यास बनाने का विचार उनके करीबी लोगों व परिजनों के दिमाग में आया तो न्यास के नामकरण का काम आलोक तोमर ने किया. आलोक तोमर के मुंह से निकले नाम को ही सबने बिलकुल सही करार दिया- ''प्रभाष परंपरा न्यास''. प्रभाष जोशी नामक शरीरधारी भले इस दुनिया से चला गया पर प्रभाष जोशी संस्थान तो यहीं है. प्रभाष जी की सोच, विचारधारा, सरोकार, संगीत, क्रिकेट, लेखन, जीवनशैली, सादगी, सहजता... सब तो है..

और उनसे जुड़े लोग शिद्दत से महसूस करते हैं कि प्रभाष जोशी की जो स्टाइल है, जो दर्शन है, जो जीवनशैली है... उसे समवेत रूप में कहें तो जो परंपरा है, उसको आगे बढ़ाया जाना चाहिए. इसी कारण आलोक तोमर के मुंह से निकले 'प्रभाष परंपरा' को कोई खारिज नहीं कर पाया क्योंकि ये दो शब्द खुद ब खुद प्रभाष जोशी नामक शरीरधारी के न रहने और प्रभाष जोशी नामक संस्थान के काम को आगे बढ़ाने की जरूरत महसूस कराने के लिए बिलकुल सटीक लगे. तो, इस ''प्रभाष परंपरा न्यास'' का गठन हुआ. लेकिन हद देखिए कि कुछ लोगों ने उसमें न्यास में आलोक तोमर को ही शामिल नहीं होने दिया. जिस प्रभाष जोशी और आलोक तोमर के नाम को जनसत्ता का पर्याय माना गया और जो आलोक तोमर दुनिया भर को डंके की चोट पर बताता रहा कि प्रभाष जोशी मेरे गुरु हैं, पिता तुल्य हैं, भगवान हैं, उनसे कोई पंगा लेगा तो नंगा कर दूंगा... और ऐसे पंगों के अनेक मौकों पर आलोक तोमर लाठी लेकर प्रभाष विरोधियों को नंगा करने दौड़ पड़े.... उन्हीं आलोक तोमर को प्रभाष परंपरा न्यास में शामिल नहीं किया गया.

कहते हैं, अच्छे लोग जल्द दुनिया छोड़ जाते हैं. प्रभाष जोशी चले गए तो उनकी याद को अमर रखने के लिए और उनकी परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए न्यास का नामकरण करने के बाद एक दिन आलोक तोमर भी इस फानी दुनिया को नमस्ते कर चले. आलोक तोमर को इंदौर के लोग बहुत चाहते थे. आज भी चाहते हैं. इंदौर प्रेस क्लब के बुलावे पर वे पिछली बार भाषाई पत्रकारिता महोत्सव में इंदौर गए भी थे, अपनी पत्नी व पत्रकार सुप्रिया रॉय के साथ. आलोक तोमर के अचानक निधन से छाए मातम के बीच इंदौर प्रेस क्लब ने घोषणा कर दी कि वे लोग हर साल भाषाई महोत्सव में एक यशस्वी पत्रकार को आलोक तोमर की स्मृति में पुरस्कार देंगे ताकि आलोक तोमर के नाम व काम को जिंदा रखा जा सके और उनके इंदौर से लगाव को भी याद किया जा सके.

इस घोषणा के बारे में बाकायदे खबरें भी प्रकाशित हुई. पर जब आलोक तोमर के नाम पर पुरस्कार देने का मौका आया तो किसी को आलोक तोमर और उनकी पत्नी का नाम ही याद नहीं आया. इंदौर प्रेस क्लब और प्रभाष परंपरा न्यास की तरफ से जो दो दिनी महोत्सव इंदौर में आयोजित किया गया, उसमें आलोक तोमर का कोई नामलेवा न था. और तो और, आलोक तोमर की पत्नी और पत्रकार सुप्रिया जी को बुलाया तक नहीं गया. हालांकि कार्यक्रम होने के काफी पहले सुप्रिया जी से कहा जाता रहा कि आलोक तोमर की स्मृति में एवार्ड दिया जाना है इसलिए आपको आना ही पड़ेगा, आप अपनी मेल आईडी दे दीजिए ताकि आपको टिकट भेजा जा सके आदि इत्यादि. पर बाद में किसी को याद नहीं रहा कि आलोक तोमर की स्मृति में पुरस्कार दिया जाना है और यह भी कि सुप्रिया जी को न्योता देकर भी टिकट नहीं भेजा गया. और न ही किसी ने उन्हें फोन कर न बुला पाने के लिए खेद प्रकट किया.

कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि पूरी राजनीति रामबहादुर राय की है. आलोक तोमर को जीते जी भी राम बहादुर राय ने इसलिए पसंद नहीं किया क्योंकि आलोक तोमर उनकी लकीर के फकीर नहीं बने. आलोक तोमर अपने अंदाज में बिंदास और बेबाक लेखन करते रहे और इसी शैली में जीवन जीते रहे. आलोक तोमर ने जरूरत पड़ने पर राम बहादुर राय का विरोध भी किया. राम बहादुर राय के करीबियों का कहना है कि राय साहब की ये आदत है कि वे जहां होते हैं, वहां अपने अलावा किसी और की चलने नहीं देते और इसका भी ध्यान रखते हैं कि कोई और उनसे महान न बन जाए. यही कारण है कि इस बार राम बहादुर राय के आभामंडल में इंदौर प्रेस क्लब इस कदर उलझा कि काफी कुछ गोड़गोबर हो गया.

राम बहादुर राय खुद जहाज के टिकट से इंदौर गए और कार्यक्रम खत्म होने पर जहाज से ही इंदौर से सीधे दिल्ली लौट आए. पर उन्होंने करीब ढाई दर्जन छोटे-बड़े पत्रकारों को ट्रेन के स्लीपर से उमस भरी गर्मी में दिल्ली से इंदौर भेजा. लौटने के लिए स्लीपर का भी टिकट कनफर्म नहीं हो सका इस कारण 25 से ज्यादा पत्रकार बिना वजह 48 घंटे से ज्यादा इंदौर में यहां-वहां पड़े रहे. ये परेशान हाल पत्रकार आपस में बतियाते रहे कि धन्य हैं हमारे महान पत्रकार जो हमको सादगी का पाठ पढ़ाकर स्लीपर ट्रेन में बिठा गए और वह भी टिकट बिना कनफर्म कराए, और खुद जहाज से उड़ चले. ऐसे पाखंड भरे माहौल में कोई क्या किसी से सबक लेगा और कोई क्यों प्रभाष जी की परंपरा को समझ पाएगा.

चलिए, आलोक तोमर के नाम पर कार्यक्रम नहीं हुआ या उनके नाम वाला घोषित एवार्ड नहीं दिया गया लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वहां एवार्ड का कार्यक्रम ही नहीं हुआ. वहां पुरस्कार प्रोग्राम जमकर हुआ और थोक के भाव में पत्रकारों को पुरस्कार बांटे गए. ऐसे ऐसे पत्रकारों को पुरस्कार दिए गए जो दलाली और बदनामी के शिरमौर हैं. सहारा समय के एमपी छत्तीसगढ़ हेड मनोज मनु इसके उदाहरण हैं जिन्हें हाल में ही मध्य प्रदेश सरकार ने सर्टिफिकेट दिया है कि उनके आने से उनके चैनल को विज्ञापन मिलने लगा है और वे बहुत अच्छे से सब कुठ बना-बुझा कर रखते हैं, सो, इस कारण वे महान पत्रकार हैं.

महानता के सरकारी सर्टिफिकेट पर पत्रकारिता में महान बने लोगों को अगर प्रभाष परंपरा न्यास पुरस्कृत करा रहा है या पुरस्कृत किए जाने को मौन सहमति दे रहा है तो इसे शर्मनाक ही कहा जाएगा. और, इंदौर प्रेस क्लब को भी यह सोचना चाहिए कि आखिर वे अपने पुरस्कारों को किस दिशा में ले जा रहे हैं. मनोज मनु तो सिर्फ एक उदाहरण मात्र हैं. पुरस्कृत कई पत्रकारों के नाम और उनके नेक-अनेक काम गिनाए जा सकते हैं. ये दौ कौड़ी के दलाल टाइप लोग ठीकठाक ब्रांड नाम वाले मीडिया हाउसों में बड़े पदों पर हैं, इसलिए उन्हें महान मान लिया जाता है, और शायद इसलिए भी कि तू मुझे सम्मानित कर, मैं तुझे ओबलाइज करूंगा वाला कोई अंतरसंबंध होता है.

काश ये लोग भ्रष्टाचार से नाराज उस साहसी युवक को सम्मानित कर पाते जिसने एक बड़े कांग्रेसी नेता से दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस में सरेआम सवाल किया, चप्पल दिखाया और इसी 'अपराध' के कारण कांग्रेसी चम्मच पत्रकारों का लात-हाथ खाने को मजबूर हुआ. जाहिर है, उस अदम्य साहसी युवक ने अनेक युवकों को आइना दिखाया और नेताओं को डरने पर मजबूर किया कि ज्यादा यूं ही उड़ोगे तो चपलियाये जाओगे, सरेआम. नेताओं और सिस्टम पर जनदबाव न रहेगा तो यह तंत्र लूटने खाने के लिए ही आपरेट होता रहेगा. यह जन दबाव व जन भय ही है जो तंत्र को लोक के लिए काम करने को मजबूर करता है अन्यथा अपने ओरीजनल तेवर में तो तंत्र लूट खाने को नाम है. उस युवक सरीखे अनेक युवक हैं जो पत्रकारिता में या पत्रकारिता से इतर बड़ा काम कर रहे हैं, जिन्हें मीडिया को, प्रेस क्लबों को रिकागनाइज करने की जरूरत है. अन्यथा भ्रष्टाचारियों, दलालों और भरे पेट वालों की लंबी लाइन है जो सम्मान लेने के लिए कुछ भी देने को तैयार रहते हैं.

इंदौर से लौटे कई लोगों ने कहा कि वे आगे से प्रभाष परंपरा न्यास के कार्यक्रमों में शरीक नहीं होंगे क्योंकि इसका इस्तेमाल कुछ लोग खुद को चमकाने के लिए कर रहे हैं, न कि प्रभाष जोशी की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए. इस आयोजन ने पाखंड की कई परतें उजागर कर दी हैं. न सिर्फ प्रभाष जोशी की परंपरा अपमानित हुई है बल्कि उनके अजीज शिष्य आलोक तोमर व उनकी पत्नी का भी अपमान किया गया है. किन्हीं जुगाड़ू अफसर की पत्नी स्वाति तिवारी द्वारा प्रभाष जोशी पर लिखित किताब के इस समारोह में लोकार्पित किए जाने के पीछे की सच्चाई की कथा अभी हाल में ही पता चली और भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित भी हुई है.

कोई एक दो पाप या ब्लंडर नहीं हैं, कई बड़े पाप हैं और ये जानबूझकर किए गए हैं या इन्हें मौन सहमति दी गई है. इन पापों के तले दबे इंदौर प्रेस क्लब और प्रभाष परंपरा न्यास के लोग अगर आत्मग्लानि महसूस करें सकेंगे तो संभव है उन्हें खुल दिल वाले संत प्रभाष जोशी और मस्तमौला शेर आलोक तोमर माफ कर दें, अन्यथा बेहयाई भरे जीवन जीने के लिए सारे रास्ते खुले पड़े हैं, चतुर घाघ सरीखी दिखावटी मुस्कान के हर मौके पड़े हैं.

लेखक यशवंत सिंह भड़ास4मीडिया से जुड़े हैं.

अमर उजाला की साजिश

मुंबई में 13 जुलाई को हुए बम धमाकों के बाद उत्तर प्रदेश के अखबारों में आजमगढ़ फोबिया फिर सुरुर पर है और पत्रकारों में कथित खुफिया सूत्रों, कथित स्रोतों की आड़ में खूब कुलांचे मार-मार के फर्जी खबरें छापने की होड़ मच गई है। मिसाल के तौर पर अमर उजाला लखनऊ के 16 जुलाई के अंक को ही लेते हैं जिसकी मुख्य पृष्ठ की पहली लीड स्टोरी ''संजरपुर के सैकड़ों मोबाइल फोन पर खुफिया निगाहें'' छपी है। यह खबर न सिर्फ आजमगढ़ को बदनाम करने की शातिर कोशिश है बल्कि कई पहलुओं से तो हास्यास्पद भी बन गई है।

मसलन यह खबर अपने आजमगढ़ को बदनाम करने राजनीतिक और सांप्रदायिक उद्देश्य को पूरा करने के लिए यहां तक कहती है कि ''लखनऊ जेल में बंद आईएम के आंतकी सलमान व तारिक कासमी से भी पूछताछ की गई है।'' जबकि सच्चाई तो यह है कि सलमान जिसे कुछ महीनों पहले ही दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली विस्फोटों के आरोप से बरी कर दिया है और वह अब दूसरे आरोप में जयपुर की जेल में बंद है। और जहां तक तारिक कासमी से पूछताछ की बात है तो उसकी सच्चाई यह है कि बकौल तारिक के ही उससे किसी ने इस मामले में पूछताछ नहीं की है। यह बात खुद तारिक कासमी से मिलकर आए उनके वकील और चर्चित मानवाधिकार नेता मो. शोएब ने इस झूठी खबर को पढ़ने के बाद पीयूसीएल की तरफ से जारी प्रेस नोट में कहा।

समझा जा सकता है कि आजमगढ़, जहां पर एक विजबिल मुस्लिम आबादी है, को आतंकवाद का गढ़ साबित करने के लिए रिपोर्टर ने कैसे झूठे और हास्यास्पद तर्क तक गढ़ने से गुरेज नहीं किया है। अपनी इस मनगढ़ंत कहानी को आगे बढ़ाते हुए और अपनी सांप्रदायिक कल्पनाशीलता को विस्तार देते हुए रिपोर्टर आगे कहता है कि उनसे ''यह जानने की कोशिश की गई है कि उनके कौन से साथी पूर्वांचल में सक्रिय हैं और मुंबई में विस्फोट के बारे में क्या पूर्व में उनके आकाओं के साथ कोई चर्चा हुई थी।'' खबर की भाषा और उसकी दिशा से जाहिर है कि पत्रकार मुंबई विस्फोट की आड़ में आजमगढ़ को आतंकवाद की नर्सरी साबित करने की कोशिश कर रहा है। इस कोशिश की राजनीतिक दिशा क्या हो सकती है यह समझना मुश्किल नहीं है। क्योंकि इसी तारिक कासमी का आजमगढ़ से 12 दिसंबर 2007 को अपहरण किया गया, जिस पर जांच के लिए पुलिस टीम भी गठित हुई, को बाद में 22 दिसंबर को बारबंकी से गिरफ्तार करने का दावा किया गया था, जिस पर मायावती सरकार ने इस बात की सत्यता के लिए आरडी निमेष जांच आयोग का गठन भी किया है।

इसी तरह मीडिया जो पहले उसके अपहरण पर आजमगढ़ में हो रहे धरने प्रदर्शनों की खबर छाप रही थी, पर जैसे ही एसटीएफ ने बाराबंकी से उसे आतंकी बताकर गिरफ्तार करने की झूठी कहानी गढ़ी तो मीडिया को सांप सूघ गया और वो पुलिस की हां में हां मिलाने लगी। लेकिन इस राजनीतिक दिशा की तथ्यहीन खबरें सिर्फ लखनऊ ब्यूरो से ही नहीं हैं बल्कि पृष्ठ बारह पर छपे सुमंत मिश्र की ''मुबई सीरियल ब्लास्ट से जुड़े अधिकारी जता रहे हैं ऐसी आशंका'' शीर्षक वाली खबर में भी देखी जा सकती है। जहां वे भी दोहराते हैं कि ''लखनऊ एटीएस की टीम जेल में सलमान से पूछताछ कर इस तरह के उम्र वाले लड़कों के बारे में जानकारी हासिल करने में जुटी है।'' जाहिर है कि ऐसे तथ्यहीन और हास्यास्पद खबर लिखने के पीछे एक सोची समझी रणनीति काम रही है जिसमें सिर्फ लखनऊ ब्यूरो ही नहीं पूरे अखबार समूह में एक आम सहमति बनी है कि हमें ऐसी फर्जी खबरें ही करनी हैं।

जबकि सलमान की कहानी यह है कि उसे कुछ महीनों पहले ही दिल्ली की अदालत ने उसे दिल्ली विस्फोटों के आरोप से न सिर्फ बरी किया बल्कि उसकी गिरफ्तारी के संदर्भ में पुलिस कार्यप्रणाली पर तल्ख सवाल भी उठाए। दरअसल कोर्ट ने यह पाया कि सलमान, जिसे एटीएस ने उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर से गिरफ्तार करने का दावा किया था, के साथ पुलिस ने जिस नेपाली पासपोर्ट के बरामद होने का दावा किया था उसे वह कभी पेश नहीं कर पाई। दूसरे, पुलिस ने एक फर्जी फोटो स्टेट जिसमें सलमान की उम्र 27 साल दिखाई गई थी जबकि उसकी वास्तविक उम्र पन्द्रह साल थी को कोर्ट में पेश किया और तीसरे पुलिस ने सलमान के पास से जो सउदी अरब का हेल्थ कार्ड बरामद होने का दावा किया था वो भी फर्जी निकला। कोर्ट ने पुलिस और एटीएस पर सलमान जैसे निर्दोष को फंसाने के लिए पुलिसिया करतूतों की काफी आलोचना की और सख्त हिदायत दी कि पुलिस अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाए।

यहां दिलचस्प बात है कि सलमान की गिरफ्तारी के वक्त भी मीडिया द्वारा इन्हीं झूठे सुबूतों का पुलिंदा बनाकर उसकी एक खतरनाक छवि बनाने का प्रयास किया गया था। दरअसल सलमान के सहारे पुलिस और खुफिया एक मीडिया ट्रायल कर रहे हैं कि सलमान भले ही सुबूतों के आभाव में बरी हो गया है, लेकिन वह आतंकवादी है। यह राज्य की नीति है कि वह अपने द्वारा अपने हितों के लिए पकड़े गए लोग जो न्यायालय से बरी भी हो गए हैं, उनको समाज में अस्वीकार बना दें। इसी खबर में कहा गया है कि सलमान जो की छोटी उम्र का है, इसलिए उससे छोटी उम्र के लड़कों के बारे में जानकारी इकट्ठी की जा रही है के सहारे छोटी उम्र के आजमगढ़ के लड़कों पर जहां एक ओर मनोवैज्ञानिक रुप से दबाव बनाया जा रहा है। वहीं समाज के नजर में उन्हें एक संदिग्ध मुस्लिम पीढ़ी के बतौर स्थापित करने की कोशिश की जा रही है।

यह कोशिश बाटला हाउस के वक्त भी की गई थी, जब 16 साल के साजिद को बाटला हाउस (बाटला हाउस कांड को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी वेब साइट पर फर्जी मुठभेड़ो की लिस्ट में रखा है।) फर्जी मुठभेड़ में मारकर कांग्रेस ने आजमगढ़ के बच्चों पर यह आरोप मढ़ा कि वह आतंकवादी होते हैं। इस रणनीति से फायदा यह है कि हिंदुत्वादी दिशा अख्तियार कर चुकी राजनीतिक माहौल में टेरर पालिटिक्स को लंबे समय तक चलाया जा सके। ''फिर आजमगढ़ के चार युवकों के नाम'' शीर्षक से वाराणसी डेट लाइन से छपी खबर में इस पूरे फर्जीवाड़े का सबसे हास्यास्पद पंक्ति तो ''इंडियन मुजाहिद्दीन के साथ आजमगढ़ के लोग काफी तेजी से जुड़ रहे हैं। आजमगढ़ के ही किसी व्यक्ति को ही इंडियन मुजाहिद्दीन में महत्वपूर्ण पद दिए जाने की बात चल रही है।'' समझा जा सकता है कि पत्रकार की समझ यह है कि इंडियन मुजाहिद्दीन कांग्रेस-भाजपा की तरह से मास बेस पार्टी है जिसमें लोग अपने समर्थकों के साथ, बैनर झंडा और वाहन जुलूसों के साथ नारे लगाते हुए शामिल होने जा रहे हों और अपने किसी छुटभैया नेता को पद दिलाना चाह रहे हैं।

दरअसल पत्रकारों की ऐसी मानसिकता लगातार पुलिसिया केस डायरी की नकल उतारने को ही पत्रकारिता समझ बैठने के चलते पैदा हो जाती है, जो अस्वाभाविक नहीं है। जिसे हमने काफी करीब से देखा कि कई बार बाहरी पत्रकार आते हैं तो इंडियन मुजाहिद्दीन का दफ्तर खोजते हैं। क्यों कि उनके भाई-बंधु पत्रकारों ने फर्जी खबरों के माध्यम से इस बात को प्रसारित किया है कि आजमगढ़ में इंडियन मुजाहिद्दीन का दफ्तर है, जिसे देखने का कौतूहल उनमें आजमगढ़ पहुंचते ही हो जाता है। और जो नहीं आ पाते हैं अपने कल्पनाशील चछुओं से महानगरों में ही बैठे-बैठे ही देखने लगते हैं।

लखनऊ श्रमजीवी पत्रकार संघ और जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी द्वारा जारी.

रविवार, 1 मई 2011

दो पैग और अखबार के मालिक से मेरी भिड़ंत

शाम के वक्त एक साहित्य प्रेमी अमीर मित्र का फ़ोन आया उनके फ़ार्म हाउस मे वाईन एंड डाईन का न्योता था। मुफ़्त मे पैग लगाने की खुशी में मैं दनदनाता पहुंच गया। वहां एक सज्जन और विराजमान थे। मित्र ने मेरा उनसे परिचय करवाया वे मध्य भारत के सबसे बड़े अखबार के मालिक और संपादक थे। उन्होंने ससम्मान मुझसे हाथ मिलाया बैठने के बाद मित्र ने मेरा परिचय दिया भाई साहब बड़े अच्छे व्यंग्यकार हैं।

यह सुनते ही सज्जन के चेहरे पर तिरस्कार के भाव उभरे मन ही मन उन्होंने अनुमान लगाया जरूर इस लेखक की चाल होगी पार्टी के बहाने अपने लेख पढ़वायेगा। पर टेबल पर रखी शीवाज रीगल की बोतल देख उनकी नाराजगी कुछ कम हो गयी, मन मार कर बोले चलिये इसी बहाने आपसे मुलाकात हो गयी। मैंने भी मन ही मन सोचा भाड़ में जाये, मुझे इससे क्या लेना-देना अपन तो पैग लगाओ। यहां वहां की चर्चा होती रही और अखबार के मालिक साहब इंतजार करते रहे कि कब मैं अपनी रचना उन्हें दिखाउंगा।

दो राऊंड होने के बाद भी जब लेख प्रकाशित करने की कोई चर्चा न हुई तो मालिक साहब का माथा ठनका पांच राउंड होने के बाद तो सब गहरे मित्र बन जाते हैं, ऐसे में बात टालते न बनेगी। मालिक साहब ने बात मेरे लेखन पर मोड़ी भाई साहब कोई रचना साथ लाये हैं क्या? मैंने पूछा किस लिये? हकबकाये मालिक साहब ने कहा अखबार मे छापने के लिये और क्यों? मैंने पूछा किस अखबार में, वे बोले मैं छापूंगा तो अपने अखबार में ही ना, लगता है आप मेरी बात कुछ समझे नहीं। मैंने कहा आप तो कोई अखबार निकालते ही नहीं। मालिक साहब ने असहाय भाव से मित्र की ओर देखा मानो कह रहे हों दो पैग में लग गयी है।

मालिक साहब ने याद दिलाया वे फ़लां अखबार के मालिक-संपादक हैं। मैंने पलट कर जवाब दिया वो अखबार नहीं सरकार का मुखपत्र है भाट और चारण जैसा अंतर यही है कि सरकार की छोटी-मोटी गलतियां छाप दी जाती हैं। हां कभी-कभी उस में मंहगाई का जिक्र भी कर दिया जाता है। मालिक साहब बैकफ़ुट पर थे। आप गलत समझ रहे हैं हमारा अखबार दूसरों से अलग है, हम किसी के दबाव मे नहीं आते। मैंने कहा आम जनता को टोपी पहनाइएगा मुझे नहीं। सरकार के हर विभाग में खुला कमीशन बंट रहा है, घपले हो रहे हैं और आपके पत्रकार भी भीख मांगते वहीं पाये जाते हैं कभी छापा आपने।

क्या छापते हैं आप "अन्ना हजारे ने अपने भांजे को कांग्रेस मे भरती किया", "बाबा रामदेव खुद को राम कह रहे हैं"। शांति भूषण नजर आ रहा है आपको भ्रष्टाचार का प्रदूषण नहीं, सलवा जुड़ूम के नाम पर हो रहा अत्याचार तो खैर आपको मालूम ही न होगा, नक्सलवाद की चक्की पर पिस रहे आदिवासियों के बारे में क्या किया आपने, कुछ नहीं। छापते क्या हैं आप चमत्कारी अंगूठी फ़र्जी बाबाओ के विज्ञापन और तो और वो लिंगवर्धक यंत्र कभी उपयोग किया है आपने क्या मालिक साहब जो दूसरो को बतलाते हो।

बात बिगड़ती देख मालिक साहब ने समझौते का प्रयास किया, आप इतने जोशीले आदमी हैं लेख भी जानदार लिखते होंगे! मैंने कहा लिखता तो हूं पर छापने की हिम्मत आप में न होगी। छाप पायेंगे उन कंपनियो की काली करतूत जिनके शेयर आपने सस्ते दामों में ले रखे हैं। जिनके करोड़ों रुपये के एड आपके मुखपत्र को मिलते हैं। आप तो छापिये दलित लड़की से बलात्कार, सड़क हादसे, ब्लागरों से चुराये हुये लेख। हे फ़्री प्रेस के चाचा, फ़्री में ब्लागरों के लेख पाओ और जनता को दिखाने के लिये बड़े नाम की तारे और मच्छर पर घटिया तुकबंदी छपवाओ। आज भारत का चौथा स्तंभ न बिकता तो मजाल है भारत मे ये भ्रष्टासुर पैदा हो जाता।

अब तक चार राउंड हो चुके थे और मालिक साहब भी क्रोध में आ चुके थे। वे जोर से चिल्लाये रे बेवकूफ़ भारतीय आम आदमी, इसके जिम्मेदार खुद तुम लोग हो, तुमको हर चीज फ़ोकट में चाहिये। पैसा जेब से एक न निकलेगा बस दुनिया मुफ़्त में तुम्हारी रक्षा करे। दो रुपये किलो वाला सस्ता चावल जैसे 2 रुपये में सस्ता अखबार चाहिये तो कनकी ही मिलेगा बासमती नहीं। बीस रुपया महीना खर्चा कर एक पत्रिका तो खरीदना नहीं है कहां से रूकेगा भ्रष्टाचार। कागज का दाम मालूम है? अखबार के खर्चे कैसे पूरे होते होंगे कभी सोचा है? तुम खुद पैसा कमाओ तो ठीक और हम लोग तुम्हारे लिये भूखा मरें।

बात ध्यान से सुन हम लोग तुझको अखबार बेचते नहीं हैं, सस्ते दाम में तुझे देकर तुझको खरीद लेते हैं। फ़िर हम तुझे बेचते हैं उन कंपनियो को जो हमें तुम्हारा सही दाम देती हैं, उन नेताओं को जो तुम्हारे पैसे में ऐश करते हैं और हमें भी करवाते हैं। पैसा देकर तुम्हारी तरह फ़ोकट नहीं। और सुन तुझे और लोग भी खरीदते हैं सीआईए से लेकर तमाम विदेशी ताकि वे अपने हिसाब का लेख छपवा कर भारत में मन माफ़िक जनमत तैयार करवाएं और अपना माल खपाएं। किसी पेपर में पढ़ता है क्या कि अमेरिकी विमान रूस के समान विमान से डेढ़ गुनी कीमत के पड़ते हैं। या परमाणु रियेक्टर की कीमतों का तुलनात्मक अध्ययन। नहीं न क्यों, क्योंकि तुम लोग पैसा नहीं देते उन लोग देते हैं। तो हे फ़ोकट चंद भिनभिनाना बंद कर और चैन से मुझे पैग लगाने दे।

मैंने फ़जीहत से बचने के लिये अपने मित्र की ओर देखा पर वह तो चैन से मजा ले रहा था, अब मुझे समझ में आया ये सारा युद्ध प्रायोजित था, मैं और मालिक साहब रोमन ग्लेडिएटर की तरह उसके मजे के लिये लड़ रहे थे। मैंने प्रतिरोध किया देशभक्ति भी कोई चीज है कि नहीं। मालिक साहब बोले है क्यों नहीं हम लोग दाल मे नमक की तरह उसको भी इस्तेमाल करते हैं, तभी तो ये देश आज बचा हुआ है राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में हम कोई समझौता नहीं करते अरे भाई अगर देश ही नही रहेगा तो फ़िर तो हम पत्रकार ही जूते खायेंगे और देश को बचाएंगे। पर भाई लोगों को जब इंडिया टीवी देखने मे मजा आ रहा है तो कोई क्यों खोजी पत्रकारिता कर अपना जीवन बरबाद करें।

अब तक पांच राउंड हो चुके थे और हम दोनों गहरे मित्र भी बन चुके थे। मालिक साहब बोले यार वैसे तू बंदा बड़ा जोशीला है तुझे व्यस्त न किया गया और सरकारी माल न दिया गया तो बड़ा नक्सली नेता बन जायेगा और मारा जायेगा। एक काम कर भाई तू कल से मेरे आफ़िस आजा दिन भर यहां-वहां से सामग्री चुराना और जरा जोश भर के उसमे हेर-फ़ेर कर देना तू भी खुश रहेगा और मुझे भी चैन से पीने और जीने देगा। मालिक साहब के विदा होने के बाद मैंने दोस्त को धिक्कारा साले तू अपने ही दोस्तों का मजा लेता है। मित्र भी दार्शनिक बन गया मालिक साहब की बात भूल गया कोई भी चीज फ़ोकट में नहीं मिलती बेटा दारू का खर्चा मैंने किया था तो मजे लेने के लिये ही।

अब हिंदी बाजार में कदम रखेगा 'फिल्‍मफेयर'

वर्ल्‍डवाइड मीडिया द्वारा प्रकाशित सिनेमा आधारित मंथली अंग्रेजी पत्रिका फिल्‍मफेयर अब देशी होने जा रहा है. कंपनी इस मैगजीन को हिंदी में भी लांच करने की तैयारी कर रही है. कंपनी ने ये तैयारी महिलाओं पर आधारित अपनी पत्रिका फेमिना के हिंदी वर्जन की सफलता के बाद कर रही है. उल्‍लेखनीय है कि वर्ल्‍डवाइड मीडिया टाइम्‍स ग्रुप और बीबीसी मैगजीन्‍स का संयुक्‍त वेंचर है.

ग्रुप ने शुरुआत फिल्‍मफेयर और फेमिना के अंग्रेजी वर्जन से किया था. इसके बाद फेमिना को हिंदी में लांच किया गया. जिसे काफी सफलता मिली. इसके बाद फेमिला को तमिल में लांच किया गया, इसे भी बढि़या रिस्‍पांस मिला. इससे उत्‍साहित कंपनी ने अब फिल्‍मफेयर का भी हिंदी संस्‍करण लाने की तैयारी कर रही है. इसमें कंटेंट और विज्ञापन के बीच 75 और 25 फीसदी का रेशियो होगा. हिंदी के बाद फिल्‍मफेयर को दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं में भी लांच किए जाने की योजना है.


दैनिक जागरण की प्रिंटलाइन

दैनिक जागरण ने चुपके-चुपके प्रिंटलाइन में बदलाव कर दिया है. संस्थापक स्व. पूर्णचंद्र गुप्त और पूर्व प्रधान संपादक स्व. नरेंद्र मोहन को मुख्य प्रिंटलाइन से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है और इन दोनों स्वर्गीयों को एक छोटे से बाक्स में समेटकर मुख्य प्रिंटलाइन के ठीक उपर सिरमौर की तरह सजा दिया गया है. मतलब, दोनों ही बातें आ गईं. प्रिंट लाइन से बाहर भी ये लोग हो गए और प्रिंटलाइन के सिरमौर भी बन गए.

मुख्य प्रिंटलाइन में झन्नाटेदार तरीके से इंट्री मारी है महेंद्र मोहन गुप्त ने. वहीं महेंद्र मोहन गुप्त जो समाजवादी पार्टी से सांसद हैं, और कई महीने पहले कानपुर में एक आईपीएस अफसर के हाथों सड़क पर जलील होने को मजबूर हुए थे. वही महेंद्र मोहन गुप्त जिनके बैटे शैलेश गुप्त हैं और जो जागरण ग्रुप की पूरी मार्केटिंग के सर्वेसर्वा हैं. कहा जाता है कि इन दिनों, जबसे नरेंद्र मोहन जी का निधन हुआ, महेंद्र मोहन गुप्त उर्फ एमएमजी का सिक्का चलने लगा है. खुद एमएमजी सांसद व प्रबंध संपादक हैं और उनके पुत्र शैलेश गुप्त मार्केटिंग डायरेक्टर. तो, पिता-पुत्र की इस समय जागरण ग्रुप में तूती बोलती है.

आई-नेक्स्ट अखबार को शैलेश गुप्त का ब्रेन चाइल्ड माना जाता है. इस अखबार में संजय गुप्त का कभी हस्तक्षेप नहीं हो सका. शैलेश गुप्त के इशारे पर आलोक सांवल ने जैसा चाहा, वैसा इस अखबार को उलटा-पुलटा-सीधा-साधा-टेढ़ा-मेढ़ा चलाया व दौड़ाया. कहा जाता है कि आलोक सांवल और शैलेश गुप्त ने जागरण में ट्रेनिंग एक साथ ली. शैलेश ने डायरेक्टरी की ट्रेनिंग ली और आलोक ने शैलेश के नेतृत्व में यसमैन बनकर ब्रांडिंग की ट्रेनिंग ली. बाद में आलोक सांवल जागरण से जुदा हो गए और दुबारा तब लौटे जब शैलेश गुप्त ग्रप में काफी प्रभावशाली स्थिति में आ गए थे और उनकी तूती बोलने लगी थी. तब उन्हें आई-नेक्स्ट के लिए शैलेश गुप्त लेकर आए. संजय गुप्त ने जागरण ग्रुप के नए अखबार के एडिटोरियल कंटेंट में बतौर संपादक हस्तक्षेप करने की कई बार कोशिश की लेकिन आई-नेक्स्ट की एडिटोरियल टीम को हर बार यही मैसेज आलोक सांवल की तरफ से दिया गया कि संजय गुप्त की सिर्फ सुनो, करो वही जो मैं कहता हूं. यहां मैं का मतलब आलोक सांवल उर्फ शैलेश गुप्त से होता था.

एमएमजी और शैलेश गुप्त के प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जागरण की प्रिंट लाइन में बदलाव ला दिया गया और संपादक संजय गुप्त के ठीक उपर प्रबंध संपादक महेंद्र मोहन गुप्त का नाम डाल दिया गया. इससे एक मैसेज तो मार्केट में चला ही गया कि संजय गुप्त से भी बड़ा कोई संपादक जागरण में है जिनका नाम महेंद्र मोहन गुप्ता है. तो देखा जाए तो नरेंद्र मोहन के निधन के बाद उनके पुत्रों को दोयम करने की एमएमजी-शैलेश की कोशिशों को काफी मजबूती मिल चुकी है और अब संजय व संदीप गुप्ता को इन लोगों ने काफी अलग-थलग कर रखा है.

((दैनिक जागरण, मेरठ संस्करण में प्रकाशित प्रिंटलाइन))

ये स्टोरी दैनिक जागरण से जुड़े कई लोगों से बातचीत पर आधारित है. संभव है, स्टोरी में जो तथ्य दिए गए हैं व जो बातें कही गई हैं, उनमें सच्चाई की मात्रा में थोड़ी बहुत कमी-बेसी हो, इसलिए पाठकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी जानकारी व ज्ञान के आधार पर इस स्टोरी के तथ्यों को समृद्ध करें, सच के करीब ले जाएं.