शुक्रवार, 2 मार्च 2012

दैनिक जागरण, आगरा में आई कार्ड बनवाने के लिए वसूले गए रुपये!

दैनिक जागरण, आगरा से खबर है कि यहां पर आई कार्ड बनाने के लिए सौ-सौ रुपये वसूले गए. पर जागरण में हुई इस बनियागिरी में मैनेजमेंट का कोई हाथ नहीं है बल्कि संपादकीय प्रभारी आनंद शर्मा ने सौ-सौ रुपये वसूल कर एडिटोरियल के लोगों के लिए बढि़या प्‍लास्टिक कोटेड आईकार्ड जारी करवाया. बताया जा रहा है कि रिपोर्टर और कवरेज करने वाले पत्रकारों ने संपादकीय प्रभारी आनंद शर्मा से कार्ड के बिना आने वाली दिक्‍कतों की बात बताई थी, जिसके बाद यह वसूली हुई.

हालांकि आनंद शर्मा की मंशा गलत नहीं रही बल्कि उन्‍होंने पत्रकारों की परेशानी देखते हुए कहा कि आई कार्ड तो बन जाएगा पर इसके लिए आप लोगों को ही सौ-सौ रुपये देने पड़ेंगे. सौ रुपया देना भी कोई बड़ी बात नहीं है. पर आनंद शर्मा का मैनेजमेंट के सामने दब्‍बूपन जरूर उनके पत्रकारों को अखर गया. आनंद शर्मा चाहते तो इस संदर्भ में मैनेजमेंट से बात कर सकते थे, कर्मचारियों को होने वाली परेशानियों को बता सकते थे और कंपनी की ओर से ही आई कार्ड जारी करवा सकते थे, लेकिन उन्‍होंने ऐसा नहीं किया. क्‍योंकि इसमें प्रबंधन का कुछ हजार खर्च हो जाता.

वैसे भी बनियागिरी के बारे में कुख्‍यात जागरण प्रबंधन की नजर में अपना अंक बढ़ाने या कहिए कम होने की दिक्‍कतों के चलते आनंद शर्मा ने पत्रकारों से ही आई कार्ड के लिए पैसे वसूल लिए. वैसे भी किसी कारपोरेट अखबार या चैनल कार्यालय में आई कार्ड के लिए पैसा नहीं लिया जाता है, पर दैनिक जागरण, आगरा ने इस मामले में मिसाल कायम किया है. वैसे भी कर्मचारी बताते हैं कि आनंद शर्मा मैनेजमेंट के इतने बड़े भक्‍त हैं कि वहां से कोई फरमान जारी नहीं हुआ कि उसका इम्‍प्‍लीमेंटेंशन कराने के लिए दो कदम आगे बढ़कर ही तत्‍पर हो जाते हैं. हालांकि अपना पैसा खर्च करने के बावजूद बढि़या आई कार्ड मिलने से पत्रकार खुश हैं.

सूत्र बताते हैं कि इतनी कोशिशों के बाद भी पूर्व डीएनई विनोद भारद्वाज प्रकरण में प्रबंधन की नजर में इनके अंक कम हो गए हैं. विनोद भारद्वाज द्वारा कुछ लोगों पर मुकदमा दर्ज कराए जाने के बाद प्रबंधन आंतरिक तौर पर इनसे कुपित है. मामला अभी भले ही सीधा जागरण के किसी भी व्‍यक्ति से ना जुड़ा हो पर विनोद भारद्वाज का आरोप किस पर है यह सभी को पता है. इसलिए आजकल संपादकीय प्रभारी खुद परेशान हैं और इसी परेशानी में उन्‍होंने सौ-सौ रुपये वसूली का अभियान भी चला दिया, जिससे सहयोगी इसे प्रबंधन के सामने सरेंडर कर देने जैसी स्थिति मान रहे हैं. गौरतलब है‍ कि दैनिक जागरण आगरा में पत्रकारों से पानी पीने के पैसे भी वसूल चुका है.

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

चौथी दुनिया का हाल : रिपोर्टरों की नियुक्ति होती है विज्ञापन लाने के लिए!

देश के पहले साप्ताहिक अखबार चौथी दुनिया की दूसरी पारी अच्छी नहीं है. इस अखबार का मकसद खासकर बिहार में भटक चुका है. बिहार संस्करण में सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है. बिहार के सर्वेसर्वा सहायक संपादक सरोज कुमार सिंह अखबार एवं आदरणीय संतोष भारतीय जी की पैनी धार को भोथरा बनाकर अपनी स्वार्थसिद्धि का एक सूत्री अभियान चला चुके हैं. अखबार की दूसरी पारी के शुरू होते ही प्रधान संपादक संतोष भारतीय ने बिहार पर विशेष ध्यान देते हुए बिहार में अपने हाथ-पांव फैलाये. उन्होने कई बार स्वयं पटना आकर सरोज सिंह द्वारा बनाई गई टीम को प्रबंधन के उद्देश्यों की जानकारी दी और उनकी हौसलाफजाई की.

उस समय बिहार के छह जिलों में आठ हजार से दस हजार की सैलरी पर ब्यूरो की नियुक्ति की गई. बाद में कंपनी ने उदारता दिखाते हुए इन रिपोर्टरों को पीएफ एवं अन्य प्रकार की सुविधाएं देनी शुरू की. लेकिन अखबार का सर्कुलेशन पटरी पर आते ही इन दिनों सरोज सिंह की नीयत में खोट आ गया है. उन्होंने एक-एक करके अच्छे लोगों के पर कतरने प्रारंभ कर दिये हैं. सहायक संपादक का दायित्व निभा रहे श्री सिंह द्वारा लिये गये फैसले को अंकुश पब्लिकेशन प्रा. लिमिटेड और संतोष भारतीय के लक्ष्य से कोई सरोकार नहीं है. निजी स्वार्थ एवं विज्ञापन की राशि में हेरफेर कर वो प्रबंधन की आंखों में धूल झोंक रहे हैं.

समाचार एवं आलेख के चयन को लेकर भी सरोज सिंह का कोई उद्देश्य नहीं है. सरोज सिंह द्वारा स्तरीय आलेखों और समाचारों को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया जाता है और निम्नस्तरीय समाचारों को ज्यादा तरजीह दी जा रही है. श्री सिंह की सोच है कि अच्छे आलेखों को जगह देने से उनकी खुद की पापुलरिटी प्रभावित होगी और जिला मुख्यालय के रिपोर्टर की पापुलरिटी बढ़ जायेगी. चौथी दुनिया में बेहतर प्रदर्शन करनेवालों को हमेशा दबाब में रखा जाता है. बात-बात पर सैलरी रोक दिये जाने एवं हटा दिये जाने की धमकी दी जाती है. चौथी दुनिया प्रबंधन द्वारा बिहार-झारखंड संस्करण की सफलता हेतु हर संभव प्रयास किया जा रहा है लेकिन सरोज सिंह की गलत रणनीति अंकुश पब्लिकेशन के लिए किसी ‘मीठे जहर’ से कम नहीं है.

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बिहार झारखंड संस्करण में ‘एक नजर’ नाम से शीर्षक बनाकर दैनिक समाचार-पत्र की भांति छोटी-छोटी खबरें दी जाती है. इन छोटी खबरों के चयन हेतु कोई मापदण्ड निर्धारित नहीं है. छोटी-छोटी खबरों के स्तर को देखकर सहजता से अंदाजा लगाया जा सकता है कि चौथी-दुनिया के पास स्तरीय समाचारों की कितनी कमी है. छोटे एवं स्तरहीन खबरों को इसलिये प्रधानता दी जाती है कि ‘एक नजर’ कालम के प्रत्येक खबर पर प्रबंधन द्वारा 100 रुपया रिपोर्टरों को देने हेतु भेजा जाता है लेकिन इक्के-दुक्के लेखकों को ही पारिश्रमिक दिया जा रहा है. बांकी से झांसा देकर काम लिया जाता है. यह हकमारी पटना कार्यालय द्वारा की जाती है.

इसके अलावा विज्ञापन की राशि में दिल्ली के साथ बड़ी धोखाधड़ी की जाती है. हाफ पेज के विज्ञापन के लिए जहां पन्द्रह से बीस हजार की वसूली की जाती है वहीं दिल्ली को हाफ पेज की कीमत मात्र दस से बारह हजार रुपये दिये जाते हैं. छोटे विज्ञापनों की राशि में भी बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की जा रही है. सैलरी पर काम कर रहे अच्छे रिपोर्टरों द्वारा बेहतर बिजनेस देने के बाद भी उन्हें प्रताड़ित किया जाता है. रिपोर्टर यह समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें बेहतर समाचार हेतु रखा गया है विज्ञापन हेतु दर-दर भटकने वास्ते?

प्रेषक:

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[B]विकास कुमार[/B]

चौथी दुनिया ब्यूरो
समस्तीपुर (बिहार)।
मोबाइल: 9570349744
फैक्स: 06275-222032
ईमेल:  [LINK=repro_media@rediffmail.com]repro_media@rediffmail.com[/LINK]

बिहार में मीडिया स्‍वतंत्र नहीं : जस्टिस काटजू

पटना: प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने कहा है कि बिहार में मीडिया आजाद नहीं है। जस्टिस काटजू ने शुक्रवार को पटना विश्वविद्यालय में एक सेमिनार में कहा कि बिहार में भले ही कानून-व्यवस्था की हालत सुधर गई हो, लेकिन जहां तक मीडिया की आजादी का सवाल है, उस पर सरकार का काफी दबाव है। हालांकि उन्होंने साफ किया कि उनके पास इसका कोई ठोस आधार नहीं है और वह सुनी-सुनाई बातों के आधार पर बोल रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि मीडिया पर दबाव के आरोपों की जांच कराई जाए।

जस्टिस काटजू के मुताबिक अगर कोई सरकार के खिलाफ लिख देता है, तो उसका तबादला करवा दिया जाता है। जस्टिस काटजू के इन बयानों का कुछ लोगों ने विरोध भी किया, लेकिन बड़ी संख्या में छात्र उनके बयान से सहमत नजर आए। जिस वक्त यह सब चल रहा था, उस समय बिहार के राज्यपाल देवानंद कुंवर भी मंच पर मौजूद थे। साभार : एनडीटीवी

काटजू ने मीडिया की खराब हालत पर बिहार सरकार को चेताया

जस्टिस काटजू ने बिहार सरकार की पोल खोल दी. उन्होंने दो टूक शब्दों में बता दिया कि बिहार में मीडिया आजाद नहीं है. प्रेस कौंसिल का अध्यक्ष बनने के बाद जस्टिस काटजू अपने बयानों के कारण लगातार सुर्ख़ियों में रहे है. कभी उन्हें पत्रकारीय ठसक का विरोधी माना गया तो कभी उन्हें नन मीडिया फ्रेंडली भी कहा गया. मगर जस्टिस काटजू अपने खिलाफ कही गई हर बातों को बेफिक्री से लेते रहे. बिलकुल अपने धुन में. अभी दो दिन पहले उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को पत्र लिखा, पत्र क्या लिखा बल्कि ये भी पूछ लिया कि सरकार की बर्खास्तगी के लिए क्यों ना राज्यपाल को सिफारिश कर दी जाय.

क्या आपने या हमने सोचा था कभी कि प्रेस कौंसिल (जो आमतौर पर असक्रियता के लिए कुख्यात रहता था) उस संस्था का अध्यक्ष किसी राज्य के मुख्यमंत्री को इतनी तल्ख़ चिट्ठी लिख सकता है? आंकड़ों के अनुसार पिछले दस वर्षों में 800 पत्रकार सिर्फ महाराष्ट्र जैसे एक राज्य में पीड़ित रहे हैं. आखिर क्या गलत कहा जस्टिस काटजू ने? ऐसी लापरवाह और गैर जिम्मेदार सरकार को तो निश्चित रूप से बर्खास्त कर देना चाहिए.

मगर आज जस्टिस काटजू ने पटना विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में बिहार सरकार की कान काट दी. बकौल काटजू, भले ही बिहार में कानून व्यवस्था ठीक हो रही हो, परन्तु मीडिया के हालात ठीक नहीं हैं. उनके बयानों से साफ़ पता चलता है कि बिहार की मीडिया में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. सत्ता और शासन के दबाव में बिहार के पत्रकारों की हालत बड़ी ख़राब हो गई है. जिस-जिस पत्रकार ने नीतीश सरकार के खिलाफ कलम खोला, उनके कलम बंद कर दिए गए. कइयों की तो नौकरी तक चली गई, कई बड़े और चर्चित पत्रकारों को नीतीश के कोपभाजन का शिकार होना पड़ा. कहते हैं कलम व्यवस्था बदलती है परन्तु बिहार में व्यवस्था ने कल्मौर कलमकारों को बदल दिया. नीतीश ने मीडिया को चुनौती दी. पत्रकारों को सीधे-सीधे दबाव में लेने के साथ-साथ संस्थानों के मालिकों पर दबाव बनाया गया कि यदि सरकार की छवि किसी ने बिगाड़ी तो विज्ञापन बंद.

बिहार में तो नीतीश के शुरुआती कार्यकाल के दौरान कुछ संस्थानों ने सरकार के खिलाफ लिखा तो उसका खामियाजा आज तक वह संस्थान उठा रहा है. आन्दोलन और क्रांति के दावे करने वाले अख़बारों की हवा तक निकल गई. यहाँ तक कि सरकार के विरुद्ध फेसबुक पर मोर्चा खोलने वालों तक की नौकरी लील ली इस सरकार ने. सरकार ने सभी हथकंडे अपनाए ताकि बिहार की छवि चमकदार दिखती रहे, चाहे सच इससे कोसों दूर क्यों न हो. मगर सरकार यह  भूल गई कि झूठी छवि बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं चलती. सच्चाई कुरूप क्यों ना हो, स्वीकार तो करना होगा. जस्टिस काटजू ने बिहार में चल रहे इस अलोकतांत्रिक व्यवस्था पर जांच कि मांग की है. अब बिहार की झूठी छवि दिखा रहे लोगों को सावधान होना चाहिए क्योंकि जस्टिस काटजू आ चुके हैं. जस्टिस काटजू आपको सलाम!
         लेखक अनंत झा बिहार के युवा व प्रतिभाशाली पत्रकार हैं.

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

"मोतीलाल नेहरु का जन्म पिता की मृत्यु के ग्यारह माह बाद"- विकिपीडिया का ज्ञान

मोतीलाल नेहरु की ऐतिहासिक महत्ता से हम सभी परिचित हैं लेकिन यह हममे से कोई नहीं जानता कि उनका जन्म अपने पिता की मृत्यु के ग्यारह माह बाद हुआ था. पिता की मृत्यु के ग्यारह माह बाद संतान की उत्पत्ति संभव नहीं है, लेकिन जो भी व्यक्ति इंटरनेट आधारित मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया पर मोतीलाल नेहरु से जुड़ा पृष्ठ (http://en.wikipedia.org/wiki/Motilal_Nehru) खोल कर पढ़ेगा तो उसे यही जानकारी मिलेगी. आज जब हम, अमिताभ ठाकुर और नूतन ठाकुर विकिपीडिया पर पेज देख रहे थे तो हम भी ग्यारह माह वाली बात देख कर एकदम से चौंक पड़े.


फिर हमने इस पृष्ठ के बनने की हिस्ट्री का अध्ययन किया तो पाया कि यह पृष्ठ किसी एकअभिषेक कोड वाले व्यक्ति द्वारा 28 जुलाई 2011 को समय 12:26 पर प्रारम्भ किया गया था. पुनः 16:10 पर उसी व्यक्ति द्वारा यह तथ्य जोड़ा गया कि मोतीलाल नेहरु का जन्म अपने पिता गंगाधर नेहरु की मृत्यु के तीन माह बाद हुआ था. बाद में  28 दिसंबर 2011‎को 08:38 बजे किसी लवीसिंघल कोड वाले व्यक्ति ने इस तथ्य को बदल कर तीन माह की जगह ग्यारह माह अंकित कर दिया गया, जिसके कारण यह अजीबोगरीब तथ्य अभी भी विकिपीडिया पर अंकित है.

हम इसे लवीसिंघल का एक घृणित और आपत्तिजनक कृत्य मानते हैं और हमने एक मृत सम्मानित व्यक्ति की प्रतिष्ठा से खिलवाड़ करने वाले इस लवीसिंघल का पता लगा कर उनके विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए गृह सचिव, भारत सरकार को पत्र प्रेषित किया है. साथ ही यह प्रकरण अपने आप में विकिपीडिया जैसे इंटरनेट आधारित ज्ञान के स्रोतों की सत्यनिष्ठ और उपादेयता पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है क्योंकि आज बहुधा लोग विकिपीडिया पर लिखी बातों को पूर्ण सत्य मान कर चलने की आदत बना चुके हैं. ऐसे में कितनी आसानी से तथ्यों से खिलवाड़ किया जा सकता है, यह इस प्रकरण से देखा जा सकता है.


डॉ. नूतन ठाकुर

सचिव
आईआरडीएस, लखनऊ                                                       Curtsey : bhadas4media





 

महात्‍मा गांधी ने आकाशवाणी दिल्‍ली से कितने पैसे लिए थे?

बहुत से लोगों का यह भी मानना रहा है कि आज़ादी के बाद महात्मा गाँधी का सम्मान कम होने लगा था. यहाँ तक कि कॉंग्रेस पार्टी में भी उनकी पूछ कम होने लगी थी. अब सच्चाई जो भी हो मगर आज का दिन भारत के इतिहास का वह स्‍याह दिन है, जिस दिन सन १९४८ में  अहिंसा के अद्भुत पुजारी एवं अतुलनीय महापुरुष को नाथूराम गोड़से की गोली का शिकार बनना पड़ा था. आज जबकि पैंसठवे शहीदी दिवस पर राष्ट्र कृतज्ञता से उन्हें याद कर चुका है ऐसे में यह विचारने की ज़रुरत भी पेश आती है कि आज़ादी के बाद गांधी जी के आदर्शों पर हमारा देश, देश की सरकारें, सरकारी नौकर इत्यादि कितना चल रहे हैं. निस्संदेह सरकारी कार्यालयों में गाँधी जी की तसवीरें लटकी मिल जाएँगी और कई बार तो ऎसी हालत में मिलेंगी कि आपको शर्म आएगी. मगर तस्‍वीरें अगर बहुत चमाचम लगा दी जाएं तो भी कोई ऐसी स्थिति नहीं हो जाती कि शर्म न आए क्योंकि गाँधी जी तो आज उपहास के पात्र बन ही चुके हैं. यदि भाजपा या कम्युनिस्टों के शासन में ऐसा हो तो बात फिर भी समझ आये, मगर उनके नाम का खाने और डकारने में अग्रणी कॉँग्रेस पार्टी के शासन में ऐसा हो तो थोड़ा आश्चर्य होता ही है. थोड़ा इसलिए क्योंकि ज्यादा आश्चर्य करने जैसी कोई बात अब शायद बची ही नहीं है.

कॉँग्रेस के शासनकाल में दिल्ली के एक अति महत्वपूर्ण कार्यालय में गाँधी जी को जिस हल्केपन से लिया गया उसे जान आपको भी थोड़ा आश्चर्य तो होगा ही. हम आपका ध्यान एक आरटीआई के जवाब की तरफ ले जाना चाहेंगे जो प्रसार भारती, आकाशवाणी दिल्ली केंद्र द्वारा २० मई २०११ को एक प्रार्थी को भेजा गया था. उससे पहले हम आपको यह बताना चाहेंगे कि गाँधी जी १९४७ में सिर्फ एक बार आकाशवाणी के दिल्ली स्टूडियो में एक रिकॉर्डिंग के लिए आए थे और प्रार्थी द्वारा पूछे गए कुछ सवालों के बीच एक सवाल यह भी था कि क्या महात्मा गांधी जी को आकाशवाणी ने कोई भुगतान किया था? जिसका जवाब आकाशवाणी दिल्ली केंद्र द्वारा कुछ यूँ दिया गया "राष्ट्रपिता महात्मा गांधी केवल एक बार १२ नवम्बर १९४७ को आकाशवाणी दिल्ली के स्टूडियो में पधारे थे, उस समय उनको भुगतान हुआ था या नहीं, यदि हुआ था तो कितना, इसका कोई रिकॉर्ड आकाशवाणी दिल्ली के पास उपलब्ध नहीं है." यानी आकाशवाणी के अधिकारी इस मामले में अपना संशय व्यक्त कर इस बात की संभावना से इन्कार नहीं कर रहे हैं कि अपना सर्वस्व त्याग कर लंगोटी पहनने वाले उस महात्मा को उनके कार्यालय ने कोई भुगतान किया होगा. और यही नहीं उसमें यह भी जोड़ रहे हैं कि "यदि हुआ था तो कितना, इसका कोई रिकॉर्ड आकाशवाणी दिल्ली के पास उपलब्ध नहीं है."

यदि आकाशवाणी के अधिकारियों के दिल में महात्मा गाँधी के प्रति सम्मान होता तो वे इस मामले में जांच करके (यदि उन्हें गांधी जी को भुगतान दिए जाने का संदेह था तो) जवाब में लिखते कि गाँधी जी को कोई भुगतान नहीं किया गया था. और यदि इनमें आलस्य के मारे जांच करने की भी सामर्थ्य नहीं बची थी तो इस जवाब की जगह कम-से-कम यही लिख देते कि  "सूचना उपलब्ध नहीं है". मगर अपने आकस्मिक कर्मचारियों के भुगतान और उनके हितों के मामले में मनमानी ढील बरतने और हरदम सब कुछ सिर्फ अपने पेट में ठूंसने की सोचने वाले इन बाबुओं को राष्ट्रपिता की प्रतिष्ठा की भला क्या परवाह होगी. वैसे यह किसी शोधार्थी के लिए एक महत्वपूर्ण शोध का विषय ज़रूर हो सकता है कि गाँधी जी आकाशवाणी दिल्ली में अपना सन्देश बोलने के कितने पैसे लेकर गए थे. और इस पर शोध होना भी चाहिए ताकि गाँधी इस संदेह से तो बरी हो सके. पर क्या गाँधी के नाम पर खाने वाली केंद्र सरकार इस बात की परवाह करेगी?
  Curtsey : bhadas4media

जेपी सिंह संपादक बने

डेली न्‍यूज एक्टिविस्‍ट, लखनऊ में अब प्रधान संपादक के रूप में डा. सुभाष राय का नाम जाने लगा है. अखबार में यह पद देशपाल सिंह पवार के इस्‍तीफा देने के बाद खाली था. गौरतलब है कि तीन दिन पहले ही डा. सुभाष राय ने जनसंदेश टाइम्‍स के प्रधान संपादक के पद से इस्‍तीफा दिया था. दूसरी तरफ, लखनऊ एडिशन में स्‍थानीय संपादक की जिम्‍मेदारी संभाल रहे अरविंद चतुर्वेदी तथा इलाहाबाद एडिशन में स्‍थानीय संपादक की जिम्‍मेदारी संभाल रहे जेपी सिंह को प्रमोट करके संपादक बना दिया गया है. गौरतलब है कि दोनों लोग काफी समय से अखबार से जुड़े हुए हैं.

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

खबरे छापने पर नौकरी गई

रवि प्रकाश का आई-नेक्स्ट पटना से सम्बन्ध टूट गया है. रवि प्रकाश तेजतर्रार पत्रकार माने जाते हैं. काफी कम समय में ही उन्होंने अपनी क्षमताओं का डंका भी बजा दिया. नेपाल के शाही हत्याकांड ने उन्हें हिंदी पत्रकारिता में चर्चित नाम बना दिया. काफी कम उम्र में अपनी पत्रकारीय कुशलताओं के चलते वो संपादक भी बन बैठे. रवि प्रकाश पिछड़ों की आवाज माने जाते हैं. पत्रकारिता में भी उन्होंने समाज में हाशिए पर चल रहे लोगों के लिए अपनी आवाज बुलंद की. रवि प्रकाश की आई नेक्स्ट के साथ यह दूसरी पारी थी. इससे पहले वो प्रभात खबर देवघर के संपादक, डीबी स्टार रांची के प्रभारी भी रह चुके हैं. लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल आखिर क्यों गए रवि प्रकाश?

रवि प्रकाश को जानने वालों के अनुसार रवि प्रकाश के स्वभाव में आक्रामकता है, व्याकुलता है. और है छटपटाहट. आक्रामकता है अपने पत्रकारीय कुशलताओं का. व्याकुलता है सिस्टम में चल रही गड़बड़ियों के कारण और छटपटाहट है पिछड़ों की आवाज सत्ता तक पहुँचाने के लिए.  और इन्हीं वजहों से रवि प्रकाश की पटना से विदाई हो गई. हालाँकि पहले यह खबर आई थी कि आई नेक्स्ट से उनके सम्बन्ध शर्मिष्ठा शर्मा की वजह से टूटे, लेकिन यह खबर गलत निकली. बल्कि हकीकत तो यह है कि रवि प्रकाश अपनी वजहों से अखबार से हटे या हटाये गए हैं. रवि प्रकाश ने बिहार के झूठे सत्ता तिलिस्म को तोड़ने की कोशिश की.

रवि प्रकाश ने बिहार के सत्तानशीनों को गरियाया, उसके झूठे मायाजाल को तोड़ा. रवि प्रकाश ने यह दिखाया कि बिहार की मरी हुई मीडिया जो दिखा, पढ़ा, सुना रही है, वो अंतिम सच नहीं है. कहते हैं बिहार की मिट्टी में बड़ी ताकत है. सच की ताकत. लेकिन यह ताकत कहीं खो गई है शायद. अब बिहार के पत्रकार गरजते नहीं हैं. शायद उनकी लेखनी की स्याही सूख गई है या उनकी लेखनी की धार को कुंद कर दिया गया है. अब बिहार चमक रहा है. अब आप बिहार का अखबार पढेंगे तो आपको दिखेगा एक सुंदर बिहार. हालाँकि सच इससे कोसों दूर है. अंदरखाने से आ रही ख़बरों के अनुसार ब्रांडिंग-मार्केटिंग के आदमी आलोक सावंल तेजतर्रार पत्रकार रवि प्रकाश की सत्ता से चल रही नैतिक लड़ाई, सरोकार वाली लड़ाई से नाराज चल रहे थे और इसी कारण आलोक सांवल ने रवि प्रकाश की आई नेक्स्ट से छुट्टी करा दी.

काटजू ने पत्र लिखा

   : No. 13/97/11-12, January 18, 2012, The Chief Minister of Chhattisgarh, State Government of Chhattisgarh, Raipur.  The Chief Secretary, State Government of Chhattisgarh, Raipur. The Home Secretary, State Government of Chhattisgarh, Raipur. Dear Sir, I have received a large number of complaints/representations from Rajasthan Patrika Group of Newspapers about harassment to the mediapersons by the authorities of the State Government of Chhattisgarh. The Copies of these complaints are being enclosed.

It is the duty of the Press Council of India to ensure the freedom of the press vide Section 13 of the Press Council Act, 1978, and the Press has a fundamental right of free speech under Article 19(1) (a) of the Constitution. Obviously, the press cannot be free if journalists are harassed. If the allegations in these complaints are correct it is a serious matter.

Please, therefore, send your reply to these complaints to me preferably within two weeks of the receipt of this letter. I may mention that I sent a similar letter to the Chief Ministers of Maharashtra and Jammu and Kashmir when I heard of harassment to journalists in their States. I said in my letter that a journalist is only doing his duty, like a lawyer arguing a case. A lawyer who defends a criminal does not become a criminal. So also a journalist discharging his duties cannot be regarded as a person who has done a wrong act. He is only exercising his fundamental right under Article 19 (1) (a) of the Constitution.

With regards,

Yours faithfully,

(Markandey Katju)

सोमवार, 2 जनवरी 2012

इंटरनेट की दुनिया में हिंदी वालों के लिए कुछ उपयोगी लिंक


हिंदी फांट्स को कैसे यूनीकोड में और यूनीकोड फांट्स को कैसे दूसरे फांट्स में कनवर्ट करें... इसके लिए यहां क्लिक करें- 
हिंदी टूलकिट आईएमई IME (फोनेटिक, रेमिंगटन सहित सात तरीके से टाइप करने वाला हिंदी कीबोर्ड) अपने लैपटाप/कंप्यूटर पर डाउनलोड करें
हिंदी टूलकिट आईएमई को इंस्टाल करने की विधि जानें
इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड में टाइप करना सीखें
गूगल आनलाइन के जरिए रोमन इंग्लिश लिखें और उसे खुद ब खुद हिंदी में कनवर्ट होते देखते जाएं... जिन्हें हिंदी टाइपिंग नहीं आती, एसएमएस के तरीके से रोमन इंग्लिश में लिखते हैं, उनके लिए ये काम का लिंक है...
विकिपीडिया पर हिंदी में इंटरनेट से संबंधित बहुत सारी जानकारियां और लिंक्स हैं, उनके माध्यम से आप नेट पर हिंदी के बारे में बहुत कुछ जान सकते हैं, क्लिक करें...
आनलाइन पीडीएफ कनवर्टर- इसके जरिए वर्ड, एक्सेल, पावर प्वाइंट, फोटो, वेब पेजेज आदि को पीडीएफ में कनवर्ट कर सकते हैं, क्लिक करें...
अन्य लिंक्स..., जो किसी न किसी के काम की हो सकती है....

दिलीप अवस्थी दैनिक जागरण लखनऊ का नया संपादक


दैनिक जागरण वालों के लिए नया साल काफी धमाकेदार है. लखनऊ यूनिट में नया संपादक नियुक्त कर दिया गया है. लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार दिलीप अवस्थी को दैनिक जागरण, लखनऊ का नया संपादक बनाया गया है. अभी तक संपादक के रूप में काम देख रहे शशांक शेखर त्रिपाठी बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले वाले अंदाज में मोबाइल फोन बंद करके एकांतवास में चले गए हैं. विनोद शुक्ला के जीते जी उनके उत्तराधिकारी के रूप में दैनिक जागरण, लखनऊ में उन्हीं की पसंद से दैनिक हिंदुस्तान, वाराणसी के तत्कालीन संपादक शशांक शेखर त्रिपाठी को लाया गया था.