शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

चौथी दुनिया का हाल : रिपोर्टरों की नियुक्ति होती है विज्ञापन लाने के लिए!

देश के पहले साप्ताहिक अखबार चौथी दुनिया की दूसरी पारी अच्छी नहीं है. इस अखबार का मकसद खासकर बिहार में भटक चुका है. बिहार संस्करण में सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है. बिहार के सर्वेसर्वा सहायक संपादक सरोज कुमार सिंह अखबार एवं आदरणीय संतोष भारतीय जी की पैनी धार को भोथरा बनाकर अपनी स्वार्थसिद्धि का एक सूत्री अभियान चला चुके हैं. अखबार की दूसरी पारी के शुरू होते ही प्रधान संपादक संतोष भारतीय ने बिहार पर विशेष ध्यान देते हुए बिहार में अपने हाथ-पांव फैलाये. उन्होने कई बार स्वयं पटना आकर सरोज सिंह द्वारा बनाई गई टीम को प्रबंधन के उद्देश्यों की जानकारी दी और उनकी हौसलाफजाई की.

उस समय बिहार के छह जिलों में आठ हजार से दस हजार की सैलरी पर ब्यूरो की नियुक्ति की गई. बाद में कंपनी ने उदारता दिखाते हुए इन रिपोर्टरों को पीएफ एवं अन्य प्रकार की सुविधाएं देनी शुरू की. लेकिन अखबार का सर्कुलेशन पटरी पर आते ही इन दिनों सरोज सिंह की नीयत में खोट आ गया है. उन्होंने एक-एक करके अच्छे लोगों के पर कतरने प्रारंभ कर दिये हैं. सहायक संपादक का दायित्व निभा रहे श्री सिंह द्वारा लिये गये फैसले को अंकुश पब्लिकेशन प्रा. लिमिटेड और संतोष भारतीय के लक्ष्य से कोई सरोकार नहीं है. निजी स्वार्थ एवं विज्ञापन की राशि में हेरफेर कर वो प्रबंधन की आंखों में धूल झोंक रहे हैं.

समाचार एवं आलेख के चयन को लेकर भी सरोज सिंह का कोई उद्देश्य नहीं है. सरोज सिंह द्वारा स्तरीय आलेखों और समाचारों को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया जाता है और निम्नस्तरीय समाचारों को ज्यादा तरजीह दी जा रही है. श्री सिंह की सोच है कि अच्छे आलेखों को जगह देने से उनकी खुद की पापुलरिटी प्रभावित होगी और जिला मुख्यालय के रिपोर्टर की पापुलरिटी बढ़ जायेगी. चौथी दुनिया में बेहतर प्रदर्शन करनेवालों को हमेशा दबाब में रखा जाता है. बात-बात पर सैलरी रोक दिये जाने एवं हटा दिये जाने की धमकी दी जाती है. चौथी दुनिया प्रबंधन द्वारा बिहार-झारखंड संस्करण की सफलता हेतु हर संभव प्रयास किया जा रहा है लेकिन सरोज सिंह की गलत रणनीति अंकुश पब्लिकेशन के लिए किसी ‘मीठे जहर’ से कम नहीं है.

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बिहार झारखंड संस्करण में ‘एक नजर’ नाम से शीर्षक बनाकर दैनिक समाचार-पत्र की भांति छोटी-छोटी खबरें दी जाती है. इन छोटी खबरों के चयन हेतु कोई मापदण्ड निर्धारित नहीं है. छोटी-छोटी खबरों के स्तर को देखकर सहजता से अंदाजा लगाया जा सकता है कि चौथी-दुनिया के पास स्तरीय समाचारों की कितनी कमी है. छोटे एवं स्तरहीन खबरों को इसलिये प्रधानता दी जाती है कि ‘एक नजर’ कालम के प्रत्येक खबर पर प्रबंधन द्वारा 100 रुपया रिपोर्टरों को देने हेतु भेजा जाता है लेकिन इक्के-दुक्के लेखकों को ही पारिश्रमिक दिया जा रहा है. बांकी से झांसा देकर काम लिया जाता है. यह हकमारी पटना कार्यालय द्वारा की जाती है.

इसके अलावा विज्ञापन की राशि में दिल्ली के साथ बड़ी धोखाधड़ी की जाती है. हाफ पेज के विज्ञापन के लिए जहां पन्द्रह से बीस हजार की वसूली की जाती है वहीं दिल्ली को हाफ पेज की कीमत मात्र दस से बारह हजार रुपये दिये जाते हैं. छोटे विज्ञापनों की राशि में भी बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की जा रही है. सैलरी पर काम कर रहे अच्छे रिपोर्टरों द्वारा बेहतर बिजनेस देने के बाद भी उन्हें प्रताड़ित किया जाता है. रिपोर्टर यह समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें बेहतर समाचार हेतु रखा गया है विज्ञापन हेतु दर-दर भटकने वास्ते?

प्रेषक:

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[B]विकास कुमार[/B]

चौथी दुनिया ब्यूरो
समस्तीपुर (बिहार)।
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